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Sunday, July 15, 2012

बापू हमारे थे ही क्या ?


अब तो बात एकदम साफ हो गयी है |सरकार ने महात्मा गाँधी को कभी औपचारिक रूप से राष्ट्रपिता की उपाधि नहीं दी थी |इस देश के लोग उन्हें यूं ही राष्ट्रपिता कह कर पुकारते आये थे जैसे किसी मोहल्ले के दबंग को दादा भईया काका आदि कहने लगते हैं |अब तक हम बापू का असम्मान, आलोचना और उपेक्षा होने पर भावुक हो जाते थे |पर अब इस सरकारी स्वीकोरिक्ति ने बता दिया है कि वह कोई राष्ट्रपिता –विता नहीं हमारी आपकी तरह एक साधारण आदमी थे और एक आम आदमी का कैसा मान और  क्या सम्मान |आम आदमी तो होता ही है सरकारी तंत्र के लिए सकल  ताड़न का अधिकारी |
इस खुलासे ने देश भर के घर  माताओं पिताओं  के लिए अजब असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है |उन्हें लगने लगा है कि उनकी संतति कभी भी यह सवाल खड़ा करके उनकी जान सांसत में डाल सकती है कि आपको किस नियम अधिनियम के तहत माता पिता कहलवाने का अधिकार कब और किसने दिया था ?यदि माता पिता कहलवाने का शौक है तो जाओ, पहले किसी मान्यता प्राप्त आईएसओ प्रमाणित लैब का अपने  डीएनए की जाँच का  प्रमाणपत्र लाओ |
महात्मा गाँधी के लिए अब मामला बड़ा ज़टिल हो गया है |उनके पास अपने पक्ष में कहने के लिए न तो कोई तर्क है ,न वैज्ञानिक साक्ष्य और न ही शारीरिक उपस्थिति |उनके पास केवल देशवासियों से मिलने वाला आदरसूचक संबोधन था ,वह भी तिरोहित हुआ |ले –दे कर दो अन्य आदरणीय विशेषण बचे हैं –बापू और महात्मा |ये विशेषण भी विवादास्पद  हैं |उनको महात्मा कहे जाने से धर्मनिरपेक्ष और तथाकथित धार्मिक पहले से ही असहज रहते आये हैं |धार्मिक उन्हें महात्मा कहलाये जाने के लिए जन्मना अहर्ताओं के अभाव में टेक्निकली अयोग्य मानते हैं और धर्मनिरपेक्षों को किसी भी प्रकार की धार्मिक शब्दावली बर्दाश्त नहीं |उनको हमेशा गाँधी जी के साथ जुड़े इस महात्मा शब्द से ही नहीं  वरन उनके द्वारा गायी जाने वाली रामधुन पर भी  घोर आपत्ति रही है |
बापू के संबोधन में भी कठिनाई है क्योंकि वह अपने पीछे आदर्श ,सदाचरण, देशप्रेम और विचारों का चाहे जो जखीरा छोड़ गए हों पर भौतिक सम्पदा के रूप में अरबों खरबों की प्रापर्टी या  कोई स्विस कोडवर्ड तो किसी को  नहीं देकर गए कि लोग  उन्हें बापू बापू कहते  फिरें  |धनवान बापुओं के लाखों वारिस खुदबखुद पैदा हो जाते हैं और निर्धन  पिताओं को तो पिता कहने में भी बेटों की जुबान दुखती  है |जब तक उनके राष्ट्रपिता होने की भ्रान्ति मौजूद थी तब तक बात कुछ और  थी |लेकिन अब वह किसके  बापू ?
राष्ट्रपिता ,महात्मा और बापू का विशेषण छिन जाने के बाद वह महज मोहनदास करमचंद गाँधी रह गए हैं |अब वह एक ऐसे  आमआदमी हैं ,जिसको मरे खपे अरसा हुआ |यह मुल्क आमआदमी के जब जिंदा होने का संज्ञान ही नहीं लेता ,वह  दशकों पहले स्वर्ग सिधारे व्यक्ति की भला क्या सुध लेगा ?उनका नाम अब न तो जनमानस को झकझोरता  है , न आदर जगाता है ,न किसी वोट बैंक के लिए डुगडुगी बनता  है और न ही हमारी स्मृति को समर्द्ध करता है |मोहनदास कर्मचंद गाँधी  का नाम लगभग छ दशक पूर्व  मृत्यु रजिस्टर में लिखा गया था ,उसकी अब अधिकारिक पुष्टि हो गयी है. 



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